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कुछ तो शर्म करो सॉफ्ट स्टेट की लेबल पर

राजनीतिक सरगर्मियॉ
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मुझे महसूस होता है कि समय को बदलना ही चाहिए. अब और शोषण बर्दाश्त नहीं होगा. हमें भी नरम राज्य( सॉफ्ट स्टेट )  के दर्जे से ऊपर आना है ताकि वह परंपरा बदली जा सके जिस पर गर्व करके हम हर किसी से पिटते रहे हैं.

दुनियॉ भर के लोग हमें उस देश का वासी मानते हैं जिसका इतिहास हमेशा से आक्रमण झेलने वाला रहा है. जब भी जिसको विजय की ललक जागी वही मुंह उठाकर चल दिया हमें लूटने और हम तो लुटने के अभ्यस्त हैं ही. बड़ा अच्छा कंबिनेशन बैठता है हमारे और उनके बीच.

इस सदियों पुरानी परंपरा को भारत बिना किसी इंकार के निभाए चला जा रहा है. ना तो हमें किसी विजय की चाहत है और ना ही कोई लाज-शर्म. तो फिर क्यों नहीं हर कोई लतिआने की अपनी ख्वाहिश पूरी करे जब हम बैठे ही हैं मार खाने को.

शक-कुषाण, ग्रीक आक्रमणों के बाद अरबों व तुर्कों के हमले झेले फिर सर उठा कर “और मारो” का उदघोष किया जिससे अंग्रेज आ गए. हमने बड़ी आसानी से समर्पण की चित-परिचित मुद्रा में उनकी भी गुलामी स्वीकार की.  भला ऐसे वफादार दास को कौन छोड़ना चाहेगा?

“हमें गुलामी की आदत लग चुकी है और हम कापुरुष होने में गर्व महसूस करते हैं” इसको हमने बार –बार सिद्ध किया है. बात चाहे वैश्विक आतंकवाद की हो या आंतरिक नक्सली हमलों की, चाहे बात हो विदेश में अपमान की, हर जगह हम पिटे और भरपूर पिटे.

कुछ भाई लोग भले ही यह कहें कि आज हम आर्थिक रूप से बड़ी ताकत हैं, दुनियॉ को हमारी हैसियत का पता लग रहा है तो इस पर मैं यह  कहना चाहुंगा कि वे गफलत में हैं. वस्तुस्थिति यह है कि जो भी हमारे यहॉ निवेश करता है वह हमको ही धमकाने की पोजीशन में आ जाता है.हम तो सदा की तरह उपकृत होने में ही उनके अहसानमंद हैं.

छोटॆ पड़ोसी देश भी हमें जब-तब दुत्कार देते हैं. चीन की तो बात ही नहीं है, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देश भी यही कर रहे हैं. अमेरिका जब हमारी सहायता करता है तो बड़े अहसान के साथ. हम सर झुका कर उसकी हर शर्त मान लेते हैं. चीन और अमेरिका हर वक्त पाकिस्तान को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं ताकि हमें वक्त-बेवक्त परेशान किया जा सके.

मुझे महसूस होता है कि समय को बदलना ही चाहिए. अब और शोषण बर्दाश्त नहीं होगा. हमें भी नरम राज्य( सॉफ्ट स्टेट )  के दर्जे से ऊपर आना है ताकि वह परंपरा बदली जा सके जिस पर गर्व करके हम हर किसी से पिटते रहे हैं.

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