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नक्सलवाद बनाम राजनीतिक चोंचलेबाज़ी

राजनीतिक सरगर्मियॉ
राजनीतिक सरगर्मियॉ
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यों तो आप सबने बहुत से चोंचलेबाजियों के नाम सुने हैं पर क्या आपको राजनीतिक चोंचलेबाज़ी के बारे में भी कुछ पता है? हो सकता है कि आप में से बहुत से लोग इस शब्द से परिचित हों पर यकीनन अधिकांश लोग इस गड़्बड़झाले से नहीं ही वाकिफ होंगे.
नक्सलिया खतरा बढ़ाने में सबसे ज्यादा योगदान राजनीतिक चोंचलेबाजी का ही रहा है. अब आप शिकायत ना करने लगिएगा कि लगे उल्टी पट्टी पढ़ाने. हॉ भाई ऐसे ही मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि इस चोंचलेबाज़ी को समझने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पडी है. मैंने जो निष्कर्ष निकाले हैं उनमें से कुछ बिन्दुओं को उठा रहा हूं.

राजनीति को चमकाने के लिए ऐसे मुद्दों को बदस्तूर जारी रखना जरूरी होता है जिनमें दुख को जिन्दा रखने की ताकत हो
अगर जनता सुखी हो तो राजनीतिज्ञों को पूछेगा कौन
वैसे तो नक्सल आन्दोलन पवित्र उद्देश्यों को लेकर आरंभ हुआ था किंतु
अब इस आन्दोलन की बागडोर हमारे नेताओं ने संभाल ली है
नेता एक संक्रामक बीमारी की तरह होता है जिसे पकड़ ले उसे बर्बाद होना ही होगा
नक्सल आन्दोलन से बहुत से नेताओं की रोजी-रोटी चल रही है. भला अपने पेट पर भी कोई लात मारता है

जब हमारे नेताओं ने भय, भूख और भ्रष्टाचार को बनाए रखने में अपनी शान समझी है तब फिर भला नक्सलवाद और आतंकवाद उनकी लिस्ट में क्यों नहीं शामिल होंगे.

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