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राजनीतिक रोटियॉ तो तभी अच्छी पकती हैं जबकि मामला फंसा रहे. इसी लाभ के खातिर कई वर्षों से महिला आरक्षण की बात की जा रही है. जिस प्रकार से मुस्लिम वोट बैंक, जातीय- धार्मिक वोट बैंक, सामुदायिक वोट बैंक् बनाए गए उसी तरह महिलाओं को भी बेवकूफ बनाने का धन्धा किया जा रहा है.
कुछ दिनों पूर्व जयंती नटराजन की अध्यक्षता वाली कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति ने महिला आरक्षण विधेयक पर छत्तीसवाँ प्रतिवेदन राज्यसभा में पेश किया. अपने प्रतिवेदन में समिति ने मत व्यक्त किया कि महिला आरक्षण विधेयक को उसके मूल रूप में पारित किया जाए, जिसका उद्देश्य संसद और प्रत्येक राज्य की विधानसभाओं की वर्तमान संख्या की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करना है.
सरकार और राजनीतिक दलों द्वारा महिला आरक्षण का शिगूफा जब- तब छोड़ा जाता रहा है. उसी कड़ी का विस्तार यह सिफारिश भी है. कांगेस और बीजेपी सहित अधिकांश दल इस मुद्दे पर एकमत दिखते हैं कि महिला आरक्षण होना ही चाहिए जबकि सपा सहित कुछ छोटे दल कुछ विशेष कारणों से इस विधेयक को उसके मूलरूप में पारित किए जाने के विरोधी हैं. मामला कुछ भी हो लेकिन असली तथ्य पर विचार करना होगा कि क्या वास्तव में महिला आरक्षण जरूरी है या फिर यह भारत के राजनीतिक पटल पर एक और नौटंकी का विस्तार है.
यहॉ कुछ प्रश्न हैं:
क्या महिला का अर्थ अशक्त और अबला है?
क्या महिला स्वयं सक्षम नहीं है?
क्या महिला की वास्तविक जरूरत है आरक्षण?
अन्य वर्गों को जिस राजनीतिक नौटंकी के तहत अभी तक जो आरक्षण दिया गया है क्या उसका कोई सार्थक परिणाम आया?
आरक्षण का लालीपॉप भारत के लिए कितना हितकारी है?
वोट की राजनीति के कारण और कौन नए प्रस्ताव लाए जाएंगे?
यदि ध्यान से देखें तो हमें महिला आरक्षण प्रस्ताव के राजनीतिक निहितार्थ समझ में आ जाएंगे. आजाद भारत के नेता इतने पावन और पाक-साफ तो हैं नहीं कि कोई भी कदम बिना बड़े फायदे के उठा लें. इस विधेयक को लटकाए रखना और जब-तब इसे पारित करवा देने का नाटक चलाते रहना तो उनकी मजबूरी है. राजनीतिक रोटियॉ तो तभी अच्छी पकती है जबकि मामला फंसा रहे. इसी लाभ के खातिर कई वर्षों से महिला आरक्षण की बात की जा रही है. जिस प्रकार से मुस्लिम वोट बैंक, जातीय- धार्मिक वोट बैंक, सामुदायिक वोट बैंक् बनाए गए उसी तरह महिलाओं को भी बेवकूफ बनाने का धन्धा किया जा रहा है.
मूर्ख नहीं हैं भारत की महिलाएं जो हर वक्त नेताओं के बहकावे में आ जाएं. महिला उत्थान के लिए खुद महिला ही सक्षम है. नहीं चाहिए बैसाखी और कोई आश्वासन्. कर लेगी नारी अपना विस्तार. बस लगाम लगानी है अपने पाशविक वृत्ति पर और समझनी होगी स्त्री की भावना.
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