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कार्बन उत्सर्जन के वैश्विक आंकड़ों में भारत सहित दुनियां के टॉप पांच देशों में चीन, अमेरिका, रूस और कनाडा शामिल हैं. चीन 6103.50 मेगा टन कार्बन उत्सर्जन के साथ पहले स्थान पर है जबकि अमेरिका 5975.10, रूस 1577.69 , भारत 1510.35 तथा कनाडा 560.39 मेगा टन कार्बन उत्सर्जन के साथ क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर हैं.
इन आंकड़ों से एक महत्वपूर्ण बात यह दिखाई देती है वह है प्रतिव्यक्ति उत्सर्जन के मामले में भारत और अमेरिका एक ही पायदान पर खड़े हैं जबकि चीन का प्रतिव्यक्ति उत्सर्जन काफी कम है. इसमें भारत और अमेरिका का प्रतिव्यक्ति उत्सर्जन 19.70-19.70 है तथा चीन का केवल 4.62 पाया गया.एक और ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि 1990 के बाद प्रतिशत परिवर्तन के रूप में विकासशील देशों में उत्सर्जन की गति बढ़ी है वहीं विकसित देशों में उत्सर्जन या तो कम हुआ है और या तो बहुत धीमी गति से बढ़ा है.
किसी देश का उपभोक्ता कल्चर में परिवर्तित हो जाने का इससे बढ़िया उदाहरण और क्या हो सकता है जबकि हम हर बार अपनी समस्यायों के लिए विकसित देशों को जिम्मेदार ठहरा देने के आदी हो गए हैं. चाहे बात हो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की या बात हो आतंकवाद की हर वक्त हमारे जेहन में यही चलता है कि हर खराबियों में अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों का हाथ होता है और हम तो पूरे दूध के धुले हुए हैं.
कुल कार्बन उत्सर्जन में चीन का प्रथम स्थान पर और भारत का चौथे स्थान पर होना यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक आपदा के लिए हम भी उतने ही दोषी हैं जितना कि विकसित और औद्योगिक देश. हमें भी इस संकट से निजात पाने के लिए विकसित देशों के साथ कदमताल की जरूरत है ताकि किसी भी तरह किसी अंतरराष्ट्रीय सहमति पर पहुंचा जा सके.
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