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सुख- दुख से मुक्त जीवन

राजनीतिक सरगर्मियॉ
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सुख हो या दुख, दोनों ही अपने वेग से प्राणिमात्र को प्रभावित करते हैं. कोई सुख कितना असर डालेगा और चित्त को कितना प्रफुल्लित करेगा यह निर्भर है उस व्यक्ति की मनोदशा पर. यही बात दुख के विषय में भी सत्य है.

हर व्यक्ति अपनी इच्छाओं के कारण ही सुखी या दुखी होता है यानी इच्छापूर्ति हुई तो सुख और ना पूरी हो तो दुख. इतना ही नहीं, एक कामना के पश्चात दूसरी कामना का उदय भी खतरनाक लक्षण सिद्ध होता है. इससे दुखों की लंबी लाइन लग जाती है और यह चक्रव्यूह हम ही निर्मित कर लेते हैं.

मुक्ति का कोई उपाय दिखता है?

निश्चित तौर पर मुक्ति का रास्ता है और वह भी बहुत ही आसान. आकांक्षाओं का गला घोट कर, आवश्यकताओं को सीमित कर, संयम का सन्धान कर, संसार की नश्वरता को समझ कर बहुत ही सहजता से सुख-दुख की अनुभूतियों से मुक्त हुआ जा सकता है.

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