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वैशाली ट्रेन के थर्ड एसी कोच में सफर करने पर मुझे एक ऐसे कथन से रूबरू होना पड़ा जिसने मुझे सुबह -सुबह बहस करने पर मजबूर कर ही दिया. वाकया कुछ यों है- एक सज्जन ऊपर की बर्थ से नीचे आते हैं और थोड़े चिंता व आक्रोश से बोलते हैं कि हे भगवान इस देश का कतई भला नहीं हो सकता है क्योंकि यहॉ के लोगों में थोड़ा भी सिविक सेंस नहीं है.
अपनी तो आदत है चुप ना रहने की सो मैं बोल ही पड़ा कि भाई आखिर आप कहना क्या चाहते हैं?
उन्होंने कहा कि बहुत गन्दगी है और लोग हर ओर पहले से भी ज्यादा गन्दा करने लगे हैं.
वे सज्जन हाल ही में अमेरिका से वापस आए थे इसलिए उन्हें यह देश और इसके नागरिक जरा भी नहीं बर्दाश्त हो पा रहे थे.
मैंने कहा कि भाई क्या बात है . क्या देश को धनी बनाने के लिए सिविक सेंस का होना बहुत ही जरूरी है?
वे कहते हैं कि हॉ हॉ बिलकुल.
बड़ी चिंता हुई उनकी बात और उसमें निहित संवेदनहीनता को सुनकर.,
भारत की जनता में से उद्भूत होकर भी इस देश के गरीब नागरिकों की व्यथा को नहीं समझ पाना कितना अच्छा है?
समझना होगा कि कैसे हमारे लोग जीवन व्यतीत करते हैं. कैसे बहुत कम मजदूरी पर उनके बड़े परिवार पल रहे हैं. जिस देश का नेता हजारों करोड़ रुपए लूट कर डकार भी ना लेता हो उस देश के नागरिक सिविक सेंस कैसे दिखा सकते हैं? सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार ने आम जनता के हितों पर डाका डाला है और उन्हें बेबसी से जीने को मजबूर कर दिया है.
विकसित देशों ने जो कभी गुलाम नहीं रहे , दूसरे देशों के हितों की अनदेखी की और उनके संसाधनों पर कब्जा करने का हर प्रबन्ध किया. अब जो देश विश्व भर के सभी संसाधनों का भरपूर उपयोग कर रहें हों वहॉ के नागरिकों में तो सिविक सेन्स होगा ही. इस तथ्य के निहितार्थ को समझना जरूरी है तभी खयाल में भी अपने देश के लोगों के बारे में ऐसे बुरे विचार नहीं आएंगे.
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