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स्वार्थी तत्वों की भड़काई आग में जल रहा है देश

राजनीतिक सरगर्मियॉ
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देश आज जिस शोक से गुजर रहा है वह वाकई चिंता पैदा करने वाली बात है. इस शोक को जनम देने वाली शक्तियां मजे ले रही हैं. इन ताकतों को इस बात का भ्रम हो गया है कि अब वे इस देश के शासन शिखर पर काबिज हो कर अपनी मनमानी चला सकेंगी. अभी हाल ही में एक नक्सली नेता ने 2050 तक भारत पर कब्जा करने की घोषणा की थी. उसका कहना था कि नक्सली इतने मजबूत हो चुके हैं कि वे किसी को भी नेस्तनाबूद कर देने में सक्षम हैं.

दांतेवाड़ा की घटना से सभी को चेत जाना चाहिए क्योंकि अब ऐसी शक्तियां इतनी ताकतवर हो चुकी हैं कि यदि अब भी इन्हें समाप्त करने में कोई हीलाहवाली की गयी तो फिर विधाता भी रक्षा करने में समर्थ नहीं हो सकेगा. खुदा भी उन्हीं की मदद करता है जो अपनी सहायता के लिए कदम आगे बढ़ाता है.

कई बुद्धिजीवी नक्सलवाद को उचित ठहरा रहे हैं. इनका कहना है कि देश के कई पिछड़े भागों में विकास कार्य नहीं किए गए तथा आदिवासियों के हको-हुकूक पर हमला किया गया. विभिन्न दलों की सरकारें इन क्षेत्रों में कायम रहीं किंतु सभी का रवैय्या एक ही जैसा रहा. इसलिए आज आदिवासी स्वयं ही अपने हक को छीनने के लिए एकजुट हो चुके हैं.

किंतु यदि बात सिर्फ यही होती तो इसका वाकई हल निकाला जा सकता था. समझने की जरूरत है कि आखिर एकाएक कुछ वर्षों के भीतर ही नक्सली भय में भारी वृद्धि क्यों हो चुकी है कि वे शासन-प्रशासन पर भारी पड़ रहे हैं.

नक्सली आन्दोलन जिस उद्देश्य से आरंभ हुआ था वह अपने स्वरूप में बिलकुल बदल चुका है. आज वह पूर्ण रूप से सत्ता पर अधिकार करने की आकांक्षा से संचालित हो रहा है. भारत को अस्थिर करने की साजिश के तहत विदेशी ताकतें कुछ विशेष संगठनों को हथियार-धन मुहैय्या करा रही हैं. भारत के भीतर ही कुछ देशद्रोही मौजूद हैं जो पैसे के लालच में आदिवासियों पर अत्याचार कर रहे हैं तथा यह दुष्प्रचार कर रहे हैं कि इनके हक को मारा जा रहा है. अत्याधुनिक हथियारों के दम पर डरा-धमका कर और गरीबों के परिवारजनों का अपहरण कर उन्हें अपने शैतानी इरादों में साथ देने को मजबूर किया जा रहा है. जो ऐसा करने से इनकार करता है उन्हें मार डाला जाता है ताकि अन्य इससे डरकर किसी विरोध की जुर्रत ही नहीं कर सकें.

सब कुछ बहुत सोच-समझ कर एक खतरनाक उद्देश्य को प्राप्त करने की खातिर हो रहा है. सबसे खतरनाक बात यह है कि इसमें सहारा लिया जा रहा है पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी कहलाने वाले वर्ग का. इसमें से कुछ बुद्धिजीवी तो पैसे और सत्ता की चाह में स्वयं ही इनका साथ दे रहे हैं और कुछ डर के कारण. क्योंकि उन्हें यह अच्छी तरह पता है कि यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनके बीबी-बच्चों पर इनका कहर टूट पड़ेगा. यह तथाकथित बुद्धिजीवी ऐसा माहौल तैयार करते हैं कि आदिवासी लोगों को सताया जा रहा है और वे स्वयं ही अपनी रक्षा करने के लिए लड़ रहे हैं. यानी देश और विदेश में इन अपराधियों को सहानुभूति दिलवाने का खतरनाक खेल जारी है. इसकी ओट में पूरे भारत पर कब्जा करने की साजिश हो रही है.

कई राजनीतिक दलों में भी ऐसे कई तत्व मौजूद हैं जो एक तड़ित चालक की भांति कार्य कर रहे हैं. यानी सरकार द्वारा दमन की हर कोशिश को रोकना ही इनका लक्ष्य होता है ताकि नक्सली अपने कृत्यों को अंजाम देते रहें और फिर भी उनके खिलाफ कोई एक्शन ना लिया जा सके.
नक्सलवाद देश के लिए आतंकवाद से भी बड़ा खतरा है. क्योंकि इसके पनपने और फलने-फूलने के लिए देशद्रोही बुद्धिजीवी ही जिम्मेदार है. वह इनके लिए सहानुभूति की जमीन तैयार करता है जिससे यह मान लिया जाए कि आदिवासियों के हक-अधिकार को छीना गया है तथा उन्हें उपेक्षित किया गया जिसके कारण उठे दर्द का परिणाम है कि उन्होंने बन्दूक उठा लिया जबकि अब नक्सलियों में सामान्य आदिवासी शामिल ही नहीं हैं बल्कि वे धन की लालची प्रशिक्षित सेनाएं हैं.

वास्तव में नक्सल आन्दोलन तो बहुत पहले ही खत्म हो चुका है और अब उसके नाम का सहारा लेकर भारत के खिलाफ जंग छेड़ी गई है जो एक दिन ऐसी तबाही का मंजर कायम करने वाली है कि इससे मुक्ति का हर उपाय व्यर्थ हो जाएगा.

केन्द्र सरकार को अब इस मसले को इसी रूप में देखना होगा और क्रूर दमन के हर प्रयास करने होंगे ताकि वक्त रहते इस भीषण त्रासदी से छुटकारा पाया जा सके. हो सकता है कि सेना द्वारा इससे निजात दिलाने के क्रम में कुछ निर्दोष नागरिक भी मारे जाएं किंतु देश के बड़े भू-भाग को विदेशी ताकतों के चंगुल से मुक्ति दिलाने के लिए हमें यह कुरबानी देनी ही होगी.

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