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स्त्री-पुरुष का साथ यूं तो प्राकृतिक स्थिति है किंतु जब इसे ग्लैमराइज किया जाता है तो वाकई बात चिंताजनक हो जाती है. कुछ यही बात आजकल के सर्वाधिक विवादास्पद और चर्चित शब्द “लिव इन रिलेशनशिप” में है.
प्राचीन काल में पूरे विश्व सहित भारत में रखैल व्यवस्था समाज के काफी बड़े वर्ग में छुपे तौर पर मान्य थी. हालांकि इस व्यवस्था को सबसे अधिक प्रश्रय सामंतवाद के दौरान मिला जहॉ पर रखैलें रखना सम्मान का प्रतीक समझा जाता था. शोषण और दासता की दास्तां कहती इन रखैलों को कभी-कभी अप्रत्यक्ष रूप से काफी बड़े अधिकार भी हासिल हो जाते थे.
इस दौरान जो सबसे बड़ी बात नजर आती थी वह थी इस व्यवस्था के प्रति आमलोगों की घृणा. यानी जनसामान्य इसे अच्छा नहीं समझता था और जहॉ तक हो सके इससे दूर रहने की कोशिश करता था. और जहॉ यह व्यवस्था अपनायी गयी थी वहॉ भी इसे छुपे तौर पर ही रखा गया था.
लिव इन रिलेशनशिप बनाम रखैल व्यवस्था
क्या आपको नहीं लगता कि आज जिस एक व्यवस्था लिव इन रिलेशनशिप को सामाजिक स्वीकृति दिलाने की कवायद मीडिया और अन्य कई महानुभावों द्वारा की जा रही है वह उसी रखैल व्यवस्था को नई पैकेजिंग में और नए नाम से पेश करने की ही कवायद है. मार्केट का विकास और उसकी बढ़ोत्तरी स्त्री को भोग्या बना कर रखने में है. बाजार नए-नए ब्राण्ड का सृजन करता है और इसी तरह उसने रखैल सिस्टम को भी प्रतिस्थापित कर लिव इन रिलेशनशिप को स्थापित किया. उस पर तुर्रा ये कि ये सब स्त्रियों को आजादी दिलाने के नाम पर हुआ. कितनी आसानी से लोग फंस गए इस दुष्चक्र में और लगे अलापने राग आजादी की……………
कैसी आजादी…किससे आजादी और कितनी आजादी………
नारी को मूर्ख समझने वाला बाजार उसे अंतिम रूप से केवल एक उपभोग की वस्तु में तब्दील कर देना चाहता है और भोगी पुरुषों की इसमें पूरी स्वीकृति भी शामिल है. यह बार-बार आजादी की बात करते हैं ध्यान रहे बातें और केवल बातें और हकीकत में उन्हें पूर्णरुपेण गुलाम बनाने की साजिश हो रही है.
चूंकि इस वर्ग को पता है कि आज की स्त्री को पहले की तरह सीधे-सीधे बेवकूफ बना कर शोषण नहीं किया जा सकता इसलिए उन्होंने इसे नए नामों से पेश करना शुरू कर दिया. यह नाम आकर्षक है, सुन्दर है और नशे की तरह है.
अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है ये कहना कि हम उदारवादी हो चले हैं. हम एक नए युग में जी रहे हैं जहॉ नारी स्वतंत्र है, अपने डिसिजंस खुद ले सकती है……..खुद अपने कॅरियर, विवाह और बच्चे के जन्म का भी निर्णय उसके ही हाथों में है.
मुलम्मा चढ़ा है आजादी का और गुलामी की जंजीर उसके गले में डाल दी गयी है, उसका पूरा शरीर बेडियों से जकड़ दिया गया है………. सांस भी ले पाना मुश्किल हो रहा है………….
यही है बाजार की हकीकत
और ये सब कर रहा है बाजार जहॉ बिक रही है नारी की अस्मिता, उसका अस्तित्व, उसे भोग्या और पूरी तरह से सिर्फ भोग्या बना दिया बाजार ने…………..मुक्ति नहीं अब क्योंकि जब तक बाजार है बिकता रहेगा सबकुछ.
इस हकीकत को समझना जरूरी है कि लिव इन रिलेशनशिप के लिए जितने आन्दोलन भारत में नारीमुक्ति और उदार वातावरण तथा उदार समाज बनाने के नाम पर हो रहे है उनमें से ज्यादातर लोग इस सच्चाई से नावाकिफ हैं, किंतु उन्हीं परिवर्तनवादियों में ऐसे वास्तविक लोग भी मौजूद हैं जो सब कुछ जानते हैं कि ऐसा क्यूं होना चाहिए, और वे उसी सोची-समझी नीति के तहत बड़े संगठन बना कर शोषण का माहौल कायम कर देना चाहते हैं.
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