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बड़े जोर से तैयारियां चल रही हैं. हर आमोखास इसी अरमान में डूब उतरा रहा है कि अबकि बार मौका मिला है पूरी दुनियां जान जाएगी कि हम भी हैं कुछ. पाकिस्तान और चीन वाले तो जल-भुन के रह जाएंगे कि कैसे हमने पूरा कार्यक्रम इतनी आसानी से पूरा कर लिया. बड़ा अवसर है इसे छोड़ना नहीं है. सरकार भी खुश है और नेता भी खुश, अधिकारी और अपराधी भी खुश. पूरा रामराज्य लगने लगा है जहां हर किसी को मिली है छूट.
पर किसकी छूट? अरे भई लूट की और किसकी. और बात हो रही है कॉमनवेल्थ की जहॉ ऐसे नजारे आम हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स क्या होने वाले हैं शामत गरीबों और आमजन की आ गयी है. सरकार प्रतिबद्ध है कि दिल्ली में गरीब ना दिखने पाएं. झुग्गी-झोपड़ी अगर दिख गयी तो अधिकारियों की खैर नहीं. सड़के चमाचम दिखें और दिल्ली कम से कम पेरिस तो बन ही जाए भले ही पंद्रह दिनों के लिए.
सरकार इतनी बेशर्म हो चुकी है कि अब वह कॉमनवेल्थ की तैयारी में जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखने और बोलने वालों को देशद्रोही ठहराने में लगी है. कलमाड़ी इस बीच भ्रष्टाचार के मसीहा के रूप में सामने आए हैं तो शीला दीक्षित भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी संरक्षक के रूप में बड़बोलापन दिखा रही हैं.
इन्हें चिंता है देश के शान की और चाहते हैं कि इनसे ये भी ना पूछा जाए कि भई जो स्टेडियम जरा सी बारिश नहीं झेल पा रहे हैं वे कैसे लाज बचा पाएंगे. दिल्ली आज मलवों से लदी पड़ी है, सीवर सिस्टम की बुरी हालत बदस्तूर जारी है, अधिकांश काम लटके पड़े हैं कैसे आप इतना बड़ा आयोजन करवा पाओगे. क्या सिर्फ झुग्गी-झोपड़ी वाले नहीं हो तो आप खेल का आयोजन करवा लेंगे?
सिर्फ अपनी हकीकत को छुपाके, बिना अपनी जनता की हालत सुधारे आप कौन सी करामात दिखा देंगे दुनियां को. क्या लोग पागल हैं या इतने भोले कि आपकी इस अदा पे फिदा हो जाएंगे और कहेंगे कि हॉ भई भारत ने चमत्कार कर दिया और देखो गरीबी तो नहीं लेकिन गरीबों का सफाया कर दिया.
वाकई लाजवाब है आपकी सोच, हे शीला अब और ना करो लीला. अब तो बख्श दो भारत को, भारत वालों को, हम ऐसे ही बेहतर हैं कम से कम दो जून रोटी तो मिल ही जाती है उसे भी तो ना छीन लो.
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