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समलिंगी जमात की पर्सनल च्वॉयस

राजनीतिक सरगर्मियॉ
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अभी कुछ दिन पूर्व मेरी एक महिला मित्र ने समलिंगियों और खासकर गे यानी पुरुष समलिंगियों पर अचानक चर्चा छेड़ दी. थोड़ा असहज था उनसे वार्ता कर पाता इस मुद्दे पर किंतु जिस वक्त उन्होंने गे लोगों के प्रति सहानुभूति का रुख अख्तियार किया मुझे सचेत हो जाना पड़ा. उनका कहना है कि गे व्यक्तित्व एक प्रकार आंतर्द्वन्दिक व्यक्तित्व है. एक असहज, एक टूटा हुआ व्यक्तित्व, खंडित चित्त……… जो अंत में व्यवस्था और समाज द्वारा पीड़ित हो रहा है. उनकी राय में समलिंगियों के प्रति समाज को सहानुभूति की बजाय प्यार का रास्ता अख्तियार करना चाहिए. उनकी भी समाज में आम लोगों की भांति स्वीकृति होनी चाहिए.


मेरी मित्र इस मसले पर काफी संवेदनशील लग रही थीं इसलिए वाकई तत्काल कोई उत्तर नहीं देना चाहता था मैं. कोई भी ऐसा सही किंतु कठोर उत्तर ताकि उनको दुख ना हो. लेकिन जब मैने देखा कि वे इस विषय पर बुद्धि से ज्यादा भावना को तवज्जो दे रही हैं तो मुझे प्रतिवाद करना ही पड़ा.  हालांकि इसके लिए मुझे उनकी वक्र दृष्टि का शिकार भी होना पड़ा जिससे मुझे काफी तकलीफ हुई.


समलिंगी समाज में अधिकांश मानसिक विकृति के शिकार हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो केवल विचित्र अनुभवों को लेना चाहते हैं, जिनकी लालसा तरह-तरह के ऐन्द्रिक सुख की होती है. यानी मामला ज्यादातर भोग से जुड़ा है ना कि जरूरत से. आपको गांवों में भी तमाम ऐसे लोग मिल जाएंगे जो बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं और उनका यौन शोषण करते हैं. आप इस उदाहरण को केवल भोग की श्रेणी में रख सकते हैं. मेट्रोज में तमाम ऐसे युवा मिल जाएंगे जो स्त्रियों जैसी भाव-भंगिमा अख्तियार करते हैं और पुरुषों को ही आकर्षित करने की चेष्टा में लगे रहते हैं. हॉस्टल्स में रहने वाली कई लड़कियां जाने-अनजाने इस बुरी प्रवृत्ति की शिकार हो जाती हैं.


लेकिन सबसे ज्यादा खतरनाक बात तो तब होती है जबकि समलिंगी संबंधों की खुल के हिमायत की जाने लगती है और ऐसे लोगों के लिए अधिकार की मांग की जाती है. न्यायालय की समलिंगी संबंधों पर राय सामने आते ही दिल्ली के जंतर-मंतर पर जब तमाम समलिंगियों ने मिल कर अपनी खुशी का इजहार किया था तो ये जाहिर हो गया कि आज समलिंगियों की जमात कुछ ज्यादा ही मुखर है. अब लाज, डर और संकोच उनके मन से दूर हो चुका है और अब वे पूरे समाज को अपने लपेटे में ले लेने को आतुर हैं. यह जमात अपनी विकृति से पूरे समाज को ग्रसित कर देना चाहती है जिससे वह बेखौफ होकर अपनी वासना पूरी कर सके.


वास्तव में समलिंगी एक मानसिक व्याधि से ग्रसित होते हैं और इसका इलाज किया जाना चाहिए. लेकिन ये इलाज आखिर है क्या. यदि आप चाहेंगे कि इनको केवल काउंसिलिंग से या किसी दवा से ठीक किया जाए तो आप भ्रम में हैं. क्यूंकि ये इस प्रकार का रोग नहीं है. ये रोग तो है अति स्वतंत्रता की चाहत का. ये रोग है भोग की अति का. ये रोग  है मनोरंजन के नए आयाम तलाशने का. इसलिए इसके इलाज के लिए कोई अन्य उपाय काम नही आएगा. इसका केवल और केवल एक ही उपाय है वो है दंड का. भयानक दंड का, सामाजिक दंड सहित शारीरिक दंड का. और इसके सिवाय आप किन्हीं और तरीकों से इन्हें समझाना चाहेंगे तो ये आप पर ही भारी पड़ जाएंगे. इनके पास भी मानवाधिकार का वही घिसा-पिटा तर्क, इनके पास भी इंडिविजुअल आईडेंटिटी और पर्सनल च्वायस जैसे तर्क हैं. बड़ा मुश्किल है इनकी पर्सनल च्वायस की बात को खारिज करना. इसलिए किसी भ्रम में मत रहिए कि ये सुधर जाएंगे. अपने समझाने की काबिलियत अपने पास रखिए और वास्तव में आप चाहते हैं कि समलिंगी जमात निर्मूल हो जाय तो इनके लिए सहानुभूति की बजाय दंड के ख्याल पैदा कीजिए.

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