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क्या लाल चौक पे तिरंगा फहराना अपराध है?

राजनीतिक सरगर्मियॉ
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भारत के किसी भी भूभाग में तिरंगा फहराना किसे अच्छा नहीं लगता. किसे पसंद नहीं कि देश का विजय घोष, संप्रभुता के प्रतीक, सम्मान के प्रतीक और गौरव के प्रतीक अपने प्यारे झंडे को अपनी जमीन पे शान से लहराए. लेकिन ऐसा भी है कि इस देश के कुछ लोग तिरंगे के दुश्मन हैं. श्रीनगर के लाल चौक पे भारतीय झंडा कैसे लहरा सकता है. कैसे देश की जनता उस झंडे को सलामी दे सकती है. और अगर ऐसा हो गया तो कैसे राष्ट्रद्रोही अपनी मुराद पूरी कर सकते हैं. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि यदि लाल चौक पे तिरंगा फहराने की कोशिश की गयी तो हिंसा भड़क सकती है और यदि हिंसा भड़की तो उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनेगी.


जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला  का ये बयान पूरे भारत देश के लिए एक वार्निंग है कि वो जम्मू-कश्मीर से अपना दावा छोड़ दे और मान ले देशद्रोहियों की मांगें. “जम्मू-कश्मीर कभी भारत का मूलांग नहीं था” ये कहने वाले अपना विजय जुलूस निकालें क्योंकि भारत के एक राज्य का मुख्यमंत्री आधिकारिक रूप से इसे घोषित कर रहा है. उमर देश द्रोह के साक्षात प्रतीक बन रहे हैं और अलगाववादियों की आवाज को स्वर दे रहे हैं. अरुंधती अपने खोल में छुप के खुश हो रही होंगी क्योंकि ऐसे बयानों से उनको भी ताकत मिलती है.


वामपंथी बुद्धिजीवी जो केवल द्रोह की रोटी खाते हैं शायद उनके लिए ये उत्सव का अवसर है. और भारत सरकार तो इस पर मुंह खोलने से रही क्योंकि तिरंगे का सम्मान करने से उसका तुष्टीकरण व्रत भंग हो जाने का डर है. कांग्रेसी नीतियों ने देश को ऐसे मोड़ पे लाकर खड़ा कर दिया है जहॉ देश प्रेम या तिरंगे की बात करना गुनाह है. कांग्रेसी इसे कट्टरवाद या हिंदूकरण या दूसरे अर्थों में भगवा आतंकवाद कहते हैं. वामपंथी तो हमेशा से देशद्रोही रहे हैं और उन्हें तो भारत के विरुद्ध षड़यंत्र रचने में महारत हासिल है.


तो ऐसे में राष्ट्र को कैसे बचाया जाए ये एक विशद प्रश्न है. भारत राष्ट्र की संप्रभुता को उद्घोषित करने की अदम्य अभिलाषा युक्त जनता इस प्रश्न का उत्तर देने में स्वयं सक्षम है. तुष्टीकरण की नीति पर चलते-चलते कांग्रेसियों की बुद्धि पथरा गयी है और उन्हें आसन्न खतरा नजर नहीं आता. उन्हें भारत के सम्मान की चिंता नहीं, भारतीय भूभाग के शत्रुओं के पास चले जाने का गम नहीं, उन्हें तो फिकर है केवल अपने सत्ता सुख की.  उमर जैसों को सबक सिखाने की बजाय घनघोर चुप्पी क्या जाहिर करती है.


कैसे किसी राज्य के मुख्यमंत्री को ये छूट मिल जाती है कि वह तिरंगे के विरुद्ध बोल सके? कैसे आप बर्दाश्त कर सकते हैं कि आप कश्मीर में झंडा लेकर जाएं और पुलिस आपको झंडा फहराने के जुर्म में गिरफ्तार कर ले? कैसे कोई राष्ट्र राज्य अपने ही प्रतीकों को कुचलने वाले तत्वों को सम्मानित कर सकता है? लेकिन सत्ता लोलुप दलालों के नेतृत्व में सब कुछ संभव है. यहॉ आतंकवादी बिरयानी खाते हैं और देशभक्त जेल में होते हैं. तो फिर सतर्क हो जाइए क्योंकि ये एक चेतावनी नहीं बल्कि प्रत्यक्ष हमला है जिसे तभी कुचला जा सकता है जबकि हमारे अंदर देशद्रोहियों और उनका समर्थन करने वालों के खिलाफ आग धधके.

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