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न्यूयॉर्क टाइम्स के पूर्व कार्यकारी संपादक लेखक जोसेफ लेलिवेल्ड ने अपनी किताब ग्रेटसोलः महात्मागांधी एंडहिज़ स्ट्रगलविदइंडिया में गांधी जी और यहूदी आर्किटेक्ट व बॉडीबिल्डर कैलनबाक के संबंधों के बारे में कई घिनौना दावा किया है. लेखक अपनी दबी ग्रंथियों को निकालने की चेष्टा में सारी मर्यादा ताक पर रखते हुए भ्रामक और बेबुनियाद आरोप लगा कर प्रसिद्धि हासिल करने में ज्यादा इंट्रेस्टेड दिखता है. व्यभिचार और कुकृत्यों में लिप्त रहने वाले जोसेफ लेलिवेल्ड जैसे लेखकों से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है.
महात्मा गांधी जैसी सुविख्यात और वैश्विक व्यक्तित्व के विरूद्ध कुछ भी अनाप-शनाप लिखना किसी भी शख्सियत को पापुलैरिटी दिला सकने की बड़ी क्षमता रखता है. गांधी जी नस्ल वादी थे ये बात नस्लवाद की रोटी खाने वाला कहे, तो इससे बड़ी बेहयाई क्या होगी. गांधी जी के सत्य के प्रयोगों को व्यभिचार से जोड़ने वालों को ये बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि उनके इस प्रोपैगेंडे से गांधी जी की छवि तो वैसे ही रहेगी लेकिन ऐसे तुच्छ सोच वालों की हालत के बारे में अंदाजा लगाना मुश्किल है. गांधी जी पर बाइसेक्सुअल होने का आरोप तो कोई हिंसक विक्षिप्त ही लगा सकता है लेकिन घृणित लेखक ने अपनी ओर से कोई कसर नहीं उठा रखी है. सही तो ये है इस तरह का आरोप लगा कर उन्होंने ये साबित कर दिया कि उनके अपने देश अमेरिका में व्यभिचार को सदाचार माना जाता है. व्यक्ति अकसर अपनी परिस्थितियों और अपने समाज की मान्यताओं से प्रभावित होता है. अमेरिका सहित अधिकांश विकसित यूरोप के देशों में पुरुष-पुरुष या महिला-महिला के बीच सेक्सुअल संबंध होना सामान्य सी बात है. नीच, कुत्सित और निंदित कर्मों में लिप्त रहने वाले इससे ज्यादा और क्या सोच सकते हैं. उनकी दिनचर्या सेक्स से शुरू होकर सेक्स पर खत्म होती है. माता-पिता, भाई-बहन जैसे रिश्ते इंसानों के बीच होते हैं जानवरों के बीच नहीं. पोर्न फिल्मों का व्यापार करने वाले इंसानों के बीच केवल सेक्स की कल्पना किया करते हैं और हर रिश्ते को बस एक ही नाम देना जानते हैं.
कहा जाता है कि जो जैसा होता है वह वैसा ही सोचता है. तो फिर जोसेफ लेलिवेल्ड कैसे कुछ अलग सोचेंगे. उनकी सोच पर क्रोध की बजाय तरस आता है. सही मायने में वे ऐसे पागलखाने की कोठरी में जाने हकदार हैं जिसमें इंसानी प्रवेश ना होता हो. ऐसी कुत्सित वृत्ति से पीड़ित व्यक्ति का खुलेआम छुट्टा घूमना समाज में तनाव और व्यभिचार को जन्म देने वाला सिद्ध हो सकता है.
महात्मा गांधी नस्लवाद के खिलाफ सारी उम्र लड़े और पूरी दुनियां में नस्लवाद के खिलाफ घृणा उत्पन्न करने में कामयाब हुए. ये बात भी तथाकथित आधुनिक लेखकों को हजम नहीं होती. रही बात महात्मा की छवि की तो ध्यान रहे महापुरुष एक दिन में नहीं बनते और ना ही हवा में उनके कृत्य जन्म लेते हैं. उनका व्यक्तित्व इतना महान होता है कि दुनियां के सारे पापी उनकी शरण में जाकर राहत महसूस कर सकते हैं. गांधी जैसे व्यक्तित्व किसी के आरोप या किसी की प्रशंसा के मोहताज नहीं होते बल्कि वे लोगों के दिलों में इतनी गहराई से बसे होते हैं जिसे निकाल पाना नामुमकिन है.
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