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अन्ना की कोशिश !

राजनीतिक सरगर्मियॉ
राजनीतिक सरगर्मियॉ
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शायद बहुत से लोग उस व्यक्ति का नाम पहली बार सुन रहे हों जिसने क्रांतिनाद करके सरकार की नींद हराम कर रखी है. आलाकमान किंकर्तव्यविमूढ़ मुद्रा में हैं कि आखिर वे अपने सिपहसालारों को क्या निर्देश दें. क्या उस शख्स की बात मान ली जाए और यदि बात मान ली जाती है तो सरकार का क्या होगा? भ्रष्टाचार पर टिकी सरकार फिर कैसे टिकी रहेगी यदि उस व्यक्ति की मांग मान ली जाती है.


अन्ना हजारे ये नाम है उस शख्सियत का जिसने आजकल राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ रखा है. जंतर-मंतर पर आमरण अनशन करता हुआ ये शख्स सरकार के सारे मंत्रियों और सलाहकारों के लिए किसी बुरे सपने सरीखा है. नौकरशाहों की हालत तो और भी खराब है क्योंकि उन्हें पता है यदि वे फंसे तो सरकार भी साथ देने ना आएगी. मामला ही कुछ ऐसा है.


जन लोकपाल का हौव्वा सबके ऊपर चढ़कर बोल रहा है. जन लोकपाल एक खौफ का नाम बन चुका है जिससे सभी डरते नजर आ रहे हैं और ऐसा होना भी चाहिए.  भ्रष्टाचारियों की जमात में खलबली मच चुकी है. हर भ्रष्टाचारी अपनी जान बचाने की जुगत में इस मुहिम को असफल सिद्ध करने की कोशिश में लगा हुआ है लेकिन अन्ना हैं कि मानते ही नहीं. बड़ा ढीठ है ये गांधीवादी आंदोलनकारी जिसे जनलोकपाल विधेयक के वास्तविक स्वरूप से कम कुछ भी मंजूर नहीं.


स्वीडन के ऑम्बुड्समैन का भारतीय प्रतिरूप जनलोकपाल बिलकुल देशी संस्करण के रूप में परिकल्पित किया गया है जिसमें सरकारी नौकरशाहों और मंत्रियों का कम से कम हस्तक्षेप होगा ताकि  भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे देश को कुछ तो मरहम लगाया जा सके. हालांकि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण तब तक नहीं हो सकेगा जब तक कि शैक्षिक ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन नहीं किया जाता. नैतिक शिक्षा नीति ही वो पहली सीढ़ी होगी जहॉ से इस पर लगाम लगाने की कवायद सफल सिद्ध होगी. उपभोक्तावाद के बढ़ते चक्रव्यूह में फंसे हुए लोग किसी भी क्रांति के लिए सबसे बड़े बाधक होते हैं. त्याग, समर्पण और बलिदान की उदात्त भावनाएं जब तक हरेक नागरिक के दिल में नहीं उमड़तीं तब तक कोई भी उपक्रम अपना उद्देश्य पूर्ण नहीं कर सकता.


इसलिए अन्ना हजारे सहित अन्य सामाजिक-राजनैतिक सुधार के प्रणेताओं को अभी बहुत प्रयास करना होगा. इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए देश के अन्य नागरिकों को भी अपनी जोशीली भागीदारी दिखानी होगी जिससे विरोध करने वाले कल्पना में भी अवरोध खड़ी करने की ना सोच सकें. इतना ही नहीं, आज मीडिया सहित अन्य बुद्धिजीवियों में जो जोश दिख रहा है सही और उचित फैसलों के लिए यही जोश हमेशा कायम रहना चाहिए.

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