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अन्ना हजारे जंतर-मंतर पर सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं जिन्हें व्यापक जनसमर्थन मिलना शुरू हो चुका है. अन्ना हज़ारे की ये कोशिश क्या रंग दिखाएगी ये वक्त पर निर्भर है. हर आम आदमी एक उम्मीद के साथ भ्रष्टाचार मिटाने की मुहिम में अन्ना के साथ आता जा रहा है. भ्रष्टाचारियों की जमात में भय दिखने लगा है. सत्ता लोलुप राजनीतिज्ञ अभी भी अपनी चलाना चाहते हैं और रंग बदलते गिरगिट की तरह व्यवहार कर रहे हैं. कांग्रेस से कोई उम्मीद करना बेमानी है क्योंकि भ्रष्टाचार की संस्कृति उसी की देन है. अन्य राजनीतिक दल भी डर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है अगर एक पकड़ा जाएगा तो सभी पकड़े जाएंगे. जनता का जूता जब पड़ता है तो बड़े-बड़ों के होश ठिकाने आ जाते हैं और यहॉ तो सभी चोर चोर मौसेरे भाई हैं.
बहुत चरा लिया जनता को अब जनता की बारी है. ये एक दावानल है जिसका विस्तार रोक पाना मुश्किल है. देश संक्रमण काल से गुजर रहा है. नेताओं की मटरगस्तियां छुड़ाने का इससे अच्छा मौका ढूंढ़ना कठिन है. चोरों की जमात सतर्क मुद्रा में टिप्पणियां जारी कर रही है. भ्रष्टाचार के समर्थन में बोल नहीं सकते और यदि भ्रष्टाचार हटाने के यंत्र का समर्थन करें तो जान फंस जाएगी. वाकई मुश्किल आन पड़ी है राजनीतिक आकाओं के लिए. क्या करे ये जमात.
हम सभी सामान्य जन के लिए ये युद्ध का समय है. एक ऐसा युद्ध जो हर आम आदमी के हित के लिए है. जनलोकपाल कानून बनवाने की दिशा में उठे पहले कदम को मंजिल तक पहुंचाने के लिए अभी बहुत लड़ाई बाकी है. इस लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए कमर कस के तैयार हो जाइए. आप जहॉ हैं वहीं से ये लड़ाई जारी रख सकते हैं बस तरीका ऐसा चुने जिससे इस आंदोलन को बल मिले. और ध्यान रहे अब हमें पहले से कहीं सतर्क रहने की जरूरत है. कहीं ऐसा ना हो कि नेतागण सुधार के नाम पर हमें लालीपॉप पकड़ा दें और हम अपने आक्रोश को भूल जाएं.
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