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मुद्दा तो कहीं दूर छूट गया !!

राजनीतिक सरगर्मियॉ
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व्यक्तित्व के आंकलन के दौरान कई बातें ऐसी हैं जिन्हें भूल जाना पड़ता है. देश में कुछ-कुछ ऐसा ही माहौल उत्पन्न हो चुका है. चिंता होती है कि कहीं भ्रष्टाचार और व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष का मुद्दा पीछे ना छूट जाए. मीडिया से लेकर राजनीति, गली-चौपाल से लेकर गांव-शहर तक सभी ओर आजकल व्यक्ति और व्यक्तित्व की चर्चा जोर पकड़ रही है. राजनीति की मूल मंशा भी यही है कि लोग मुद्दे से हटकर बेवजह की बहस में शामिल हो जाएं ताकि उसे गत कुछ समय से निरंतर चले आ रहे डर से छुटकारा मिल सके.


रामदेव और अन्ना की लड़ाई, व्यक्तित्व की टकराहट, विचारों का अंतर्द्वंद और परिणाम कुत्सित राजनीति की विजय, कुटिल अट्टाहास और जनता की हार. वास्तविक  मुद्दा तो सार्वभौमिक भ्रष्टाचार है और इससे लड़ाई का आयाम भी बेहद व्यापक रखना होगा. सरकार की नीयत साफ-साफ जाहिर हो चुकी है, विपक्षी दलों की मंशा भी देश भली-भांति समझता है.


सत्तासीन होने की चाह रखने वाले किसी भी तरह से मुद्दे को अपने पक्ष में मोड़ना चाहेंगे, पारिस्थितिक विश्लेषण करने से ये बात साबित भी हो चुकी है. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में चारित्रिक रूप से कोई खास फर्क नहीं, क्षेत्रीय दलों की हालत उससे भी बुरी है. हर कोई किसी तरह सत्ता में पहुंच जाना चाहता है तो ऐसे में स्वाभाविक है कि वे सिर्फ मुद्दे को भुनाने की कोशिश में संलग्न हैं. राजधर्म और राष्ट्रहित पुरानी बातें हो चुकी हैं, अपरिपक्व लोकतंत्र के लिए ये घातक है.


अन्ना की मुहिम हो या स्वलाभ दृष्टि से संचालित रामदेव का आंदोलन, दोनों ने आमजन जागरुकता बढ़ाने और सत्ता को भयकंपित करने का कार्य किया. बाबा रामदेव अपनी मुहिम को ठीक ढंग से नहीं चला पाए और जगहंसाई के पात्र बने लेकिन हमें ये भी देखना होगा कि समाज के सबसे निचले स्तर से जुड़े लोगों में भी उन्होंने आत्मगौरव की सृष्टि की और राष्ट्रहित की दिशा में सोचने को प्रेरित किया. भले ही उनकी राजनीतिक आकांक्षा जगजाहिर है और उन भी भारी भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के आरोप लग रहे हों किंतु भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनका आह्वान ज्यादा महत्वपूर्ण है.


ये भी सच है कि अन्ना से जुड़े लोगों को आंदोलन के उद्देश्य और उसकी परिणति, दोनों के बारे में ज्यादा बेहतर तरीके से पता है जबकि बाबा रामदेव के बारे में ऐसा दावा नहीं किया जा सकता किंतु सिर्फ इसी आधार पर बाबा रामदेव के आंदोलन और उसके परिणाम के विषय में सवाल खड़े करना बेतुकी बात होगी. कोई भी आंदोलन भले ही अपने उद्देश्य की प्राप्ति में तात्कालिक तौर पर सफल ना हो किंतु उसके दीर्घकालिक परिणाम व्यापक होते हैं. कुछ ऐसा ही बाबा रामदेव के आंदोलन के साथ भी है. अंतिम तौर पर भटकाव की मात्रा को न्यूनतम रखकर हमें ये सोचना होगा कि बुरी मंशा युक्त राजनीति के विजय रथ को कैसे रोका जाय तथा भ्रष्टाचार पर कैसे लगाम लगाई जाय.  ये भी जानना जरूरी है कि जन लोकपाल की दिशा में जारी लड़ाई और जनलोकपाल कानून बन जाना ही भ्रष्टाचार मिटाने के लिए काफी नहीं होगा बल्कि ये केवल शुरुआत भर है. हर व्यक्ति को अपने भीतर की अंतरनिहित कमजोरियों को दूर करके प्रभावी संकल्प शक्ति के साथ उन्नत नैतिक आत्मबल को सामने लाना होगा ताकि जनहितार्थ चलाई गयी मुहिम का असर ऐसा हो जाय कि भारत भूमि का निवासी होना ही अपने आप में गर्व की बात हो.



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