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ऐतिहासिक उपलब्धि मात्र एक वर्ष की राजनीति में नवजात पार्टी ‘आप’ ने हासिल कर दिखा दिया कि उसे अब एक चुनौती के रूप में स्वीकार कर लिया जाए। दिल्ली उकता गई थी परिपक्व राजनीति के छल-प्रपंच से और उसे विकल्प दे दिया केजरीवाल ने। नई पार्टी ने जनता में उम्मीद की नई किरण का पूरा-पूरा लाभ उठाया और भाजपा को क्लीन स्वीप करने से रोक दिया। ‘आप’ की इस सफलता ने राजनीति को एक नई परिभाषा प्रदान की है जिस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है।
नए किस्म की राजनीति
‘आप’ अपने अभियान को भारत के दूरस्थ क्षेत्रों में पहुंचाने के संकल्प के साथ नया विकल्प बन सकती है।
मोदी के विजय रथ पर संकट
‘आप’ का उभार और उसकी भावी रणनीति मोदी और भाजपा की संभावित सफलता पर प्रश्नचिह्न लगा सकता है। केजरीवाल की भावी रणनीति है दिल्ली से बाहर पांव पसारने की जिसका खुलासा उनकी पार्टी के कई नेता कर भी चुके हैं। उनकी इच्छा है कि धीरे-धीरे ही सही लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में ‘आप’ को एक सशक्त विकल्प के रूप में पेश किया जाए। दिल्ली के चुनावी परिणाम इस बात की आंशिक ही सही लेकिन मजबूत ढंग से पुष्टि भी करते नजर आते हैं।
मुश्किल तो है किंतु नकार भी नहीं सकते
‘आप’ का समर्थन नहीं करेंगे किंतु भावी परिदृश्य यही कहता है कि अन्ना अपना मूक समर्थन पहले से कहीं ज्यादा देंगे ताकि ‘आप’ की सफलता का मार्ग प्रशस्त हो सके। मोदी और उनके समर्थकों के लिए यह आत्ममंथन का वक्त है कि राष्ट्रीय राजनीति में अगर केजरीवाल 40-50 सीटें पाने में कामयाब रहे तो कहीं उनके सपने दिल्ली की तरह धराशायी न हो जाएं!!!!
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